Considerations To Know About hanuman chalisa
Considerations To Know About hanuman chalisa
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भावार्थ – अपने तेज [शक्ति, पराक्रम, प्रभाव, पौरुष और बल] – के वेग को स्वयं आप ही सँभाल सकते हैं। आपके एक हुंकारमात्र से तीनों लोक काँप उठते हैं।
बुरी आत्माओं से मुक्ति के लिए, शनि के प्रकोप से बचने हेतु हनुमान चालीसा का पाठ करें
व्याख्या – मनरूपी दर्पण में शब्द–स्पर्श–रूप–रस–गन्धरूपी विषयों की पाँच पतवाली जो काई (मैल) चढ़ी हुई है वह साधारण रज से साफ होने वाली नहीं है। अतः इसे स्वच्छ करने के लिये ‘श्रीगुरु चरन सरोज रज’ की आवश्यकता पड़ती है। साक्षात् भगवान् शंकर ही यहाँ गुरु–स्वरूप में वर्णित हैं–‘गुरुं शङ्कररूपिणम् ।‘ भगवान् शंकर की कृपा से ही रघुवर के सुयश का वर्णन करना सम्भव है।
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As opposed to the original version, Hanoman inside the wayang has two kids. The initial is named Trigangga who's in the form of a white ape like himself. It is alleged that when he arrived household from burning Alengka, Hanoman had the image of Trijata's facial area, Wibisana's daughter, who took care of Sita. Over the ocean, Hanuman's semen fell and prompted the seawater to boil.
भावार्थ – श्री गुरुदेव के चरण–कमलों की धूलि से अपने मनरूपी दर्पण को निर्मल करके मैं श्री रघुवर के उस सुन्दर यश का वर्णन करता हूँ जो चारों फल (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) को प्रदान करने वाला है।
व्याख्या– ‘पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू‘ के अनुसार श्री रामचन्द्र जी वन के राजा हैं और मुनिवेश में हैं। वन में श्री हनुमान जी ही राम के निकटतम अनुचर हैं। इस कारण समस्त कार्यों को सुन्दर ढंग से सम्पादन करने का श्रेय उन्हीं को है।
SankataSankataTrouble / problem kataiKataiCut limited / conclusion mitaiMitaiRemoved sabaSabaAll pīrāPīrāPains / problems / sufferings
व्याख्या – कोई औषधि सिद्ध करने के बाद ही रसायन बन पाती है। उसके सिद्धि की पुनः आवश्यकता नहीं पड़ती, तत्काल उपयोग में लायी जा सकती है और फलदायक सिद्ध हो सकती है। अतः रामनाम रसायन हो चुका है, इसकी सिद्धि की कोई आवश्यकता नहीं है। सेवन करने से सद्यः फल प्राप्त होगा।
भावार्थ – आप सारी विद्याओं से सम्पन्न, गुणवान् और अत्यन्त चतुर हैं। आप भगवान् श्री राम का कार्य (संसार के कल्याण का कार्य) पूर्ण करनेके लिये तत्पर (उत्सुक) रहते हैं।
भावार्थ – भगवान् श्री राघवेन्द्र ने आपकी बड़ी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि तुम भाई भरत के समान ही मेरे प्रिय हो ।
यहाँ सर्वसुख का तात्पर्य आत्यन्तिक सुख से है जो श्री मारुतनन्दन के द्वारा ही मिल सकता है।
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छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥ जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।